Monday, June 20, 2011

असाधारण नायक की साधारण कथा



असाधारण नायक ओमपुरी (जीवनी)

लेखक: - नंदिता सी. पुरी

प्रकाशक: - हिन्द पॉकेट बुक्स, नइ दिल्ली-3

मूल्य: - 99 रुपये

नसीर ‘प्रशंसा में’ लिखते हैं, ओमप्रकाश पुरी से ओमपुरी बनने तक की पूरी यात्रा जिसका मैं चश्मदीद गवाह रहा हूँ, एक दुबले-पतले, चेहरे पर कइ दागों वाला युवक जो भूखी आंखों और लोहे से इरादों के साथ एक स्टोब, एक सॉस पैन और कुछ किताबों के साथ एक बरामदे में रहता था। वह अंतराष्ट्रीय स्तर का कलाकार बन गया, यह काफी छोटी कहानी हो सकती है, पर फराने समय में इसके लिए वीरता की गाथाएं गायी जाती थी। ओमपुरी जैसे अभिनेता की जीवनी वीरता की गाथा भले ही न हो, एक अभिनेता के समर्पण और संकल्प की कहानी तो जरूर बन सकती थी। लेकिन ओमपुरी की धर्मपत्नी नंदिता सी. पुरी द्वारा लिखित ‘असाधारण नायक ओमपुरी’ एक सामान्य से व्यक्ति की कमजोर सी कहानी बन कर रह जाती, जिसमें उस व्यक्ति और अभिनेता को हम ढूंढते रह जाते हैं, जिसके बारे में हॉलीवुड के प्रख्यात अभिनेता पैट्रिक स्वायज स्वीकार करते हैं, ओम ने हमें दुनिया में जीना सिखाया और अपनी पहचान स्थापित करना बताया। ‘प्रशंसा में’ लिखते हैं, ओमप्रकाश पुरी से ओमपुरी बनने तक की पूरी यात्रा जिसका मैं चश्मदीद गवाह रहा हूँ, एक दुबले-पतले, चेहरे पर कइ दागों वाला युवक जो भूखी आंखों और लोहे से इरादों के साथ एक स्टोब, एक सॉस पैन और कुछ किताबों के साथ एक बरामदे में रहता था। वह अंतराष्ट्रीय स्तर का कलाकार बन गया, यह काफी छोटी कहानी हो सकती है, पर फराने समय में इसके लिए वीरता की गाथाएं गायी जाती थी। ओमपुरी जैसे अभिनेता की जीवनी वीरता की गाथा भले ही न हो, एक अभिनेता के समर्पण और संकल्प की कहानी तो जरूर बन सकती थी। लेकिन ओमपुरी की धर्मपत्नी नंदिता सी. पुरी द्वारा लिखित ‘असाधारण नायक ओमपुरी’ एक सामान्य से व्यक्ति की कमजोर सी कहानी बन कर रह जाती, जिसमें उस व्यक्ति और अभिनेता को हम ढूंढते रह जाते हैं, जिसके बारे में हॉलीवुड के प्रख्यात अभिनेता पैट्रिक स्वायज स्वीकार करते हैं, ओम ने हमें दुनिया में जीना सिखाया और अपनी पहचान स्थापित करना बताया।

धर्म पत्नी होने के नाते नंदिता सी. पुरी को सहुलियत थी ओम पुरी के जीवन की छोटी से छोटी बातों को जान लेने की। लेकिन यही सहुलियत एक जीवनीकार की मुसीबत बन गइ। ऐसा लगता है कि वे तय ही नहीं कर पायीं कि एक अंतराष्ट्रीय स्तर के अभिनेता की जीवनी में किन बातों का समावेस किया जाना अनिवार्य है और किन्हें छोड़ दिया जाना। अम्बाला में जन्में ओमपुरी के आठ भाइ बहनों के साथ एक कुत्त्ो की भी चर्चा इस जीवनी में है जो रेल से कट मरा था। ओमपुरी के बचपन की विडम्बना वाकइ द्रवित करती है जब भूखमरी से गुजरते उनके परिवार के साथ, पेट चलाने के लिए पांच वर्ष के उम्र में पटरियों के किनारे जले कोयले चुनने और सात वर्ष की उम्र में चाय की दुकान पर काम करने की भी जानकारी मिलती है। यह भी जानकारी मिलती है कि किस तरह चाय दुकान के मालिक ने उनकी मजबूरी की कीमत उनकी मां से वसुलनी चाही और किस तरह खिलौने के लिए पैसे खाने के लिए रख लिये जाते थे। आज के ओमपुरी के विकाश से यदि ये खण्ड जुड़ पाते तो इसकी सार्थकता समझ में आती। लेकिन इन जानकारियों में नंदिता जी न तो संवेदनशीलता जाहिर कर पाती हैं न ही सार्थकता।

इस असाधारण नायक की जीवनी का एक लम्बा खण्ड ‘वह प्रेम था’ शीर्षक से है जिसकी शुरूआत नंदिता उनके 14 वर्ष की उस घटना के साथ करती हैं, जब छत पर सो रही अपनी छोटी मामी को उसने ‘छूने’ की कोशिश की थी। उसके बाद 55 वर्ष की प्रौढ़ा नौकरानी से चले शारीरिक सम्बन्ध से लेकर तलाकशुदा एक बच्चे की मां सीमा से विवाह तक और नंदिता तक पहुंचने के बीच के दर्शन भर प्रेम कथाओं के विवरण इस जीवनी में शोभायमान है। ओमफरी के व्यक्तित्व के एक नये पहलु को नंदिता रेखांकित करती हैं जब वे लिखती हैं कि ओम शादी पर विश्वास नहीं करते थे।

ओमपुरी जैसे अभिनेता की जीवनी जब सामने आती है तो उम्मीद होती है कि एक अभिनेता के विकास से पाठक रू-ब-रू हो सकेंगे। उसके अभिनय की तकनीक समझ सकेंगे। उसके अंदर छिपी संवेदनशीलता के कारणों की तलाश कर सकेंगे। अभिनय के प्रति उनके समर्पण और कैरियर के संघर्ष को समझ सकेंगे। जीवनी डायरी नहीं होती। जब किसी व्यक्ति की जीवनी लिखी जाती है तो उसका एक छोटा सा उद्देश्य भी होता है कि किसी न किसी रूप में वह व्यक्तित्व पाठकों के लिए प्रेरक बन सके। लेकिन नंदिता सी. पुरी भुल जाती हैं कि वे ओमपुरी की आत्मकथा नहीं लिख रही, जीवनी लिख रही हैं। जिस तरह से उन्होंने छोटे-छोटे निरर्थक घटना की डिटेलिंग की है वह दृश्य का सुख तो देती है लेकिन ओमफरी को समझने में जरा भी सहायक नहीं होती। आश्चर्य होता है जब नंदिता ‘सिटी ऑफ जॅाय’ शीर्षक के अन्तरगत ओमपुरी से अपनी पहली मुलाकात और प्रेम विवाह की चर्चा करती हैं, और यह भी चर्चा करती हैं कि किस तरह अमेरिका के एक मॉल में वे अपने आप को संभाल नहीं पायीं और किस तरह अमेरिका की सड़क पर एक कार ने उन्हें हल्की सी टक्कर मार दी थी। कर्इ स्थानों पर नंदिता अपने बारे में इस कदर मुखर हो जाती हैं कि यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि हम ओमफरी की जीवनी पढ़ रहे हैं या नंदिता की।

इस महान अभिनेता की जीवनी का जो अंश सबसे महत्वफर्ण हो सकता था उसे अंतिम के तीन पृष्ठों में समेट दिया गया है जहां ओमपुरी कलाकारों को अभिनय के टिप्स बताते हैं। ‘फिल्म में शारीरिक क्षमता से अलग मानसिक तौर पर जागरूक होना भी जरूरी है। यह किसी कलाकार के लिए अहम बात है कि वह किरदार के बारे में कितना सोंच समझ सकता है ताकि उसका रोल वास्तविक, आप-पास के माहौल के अनुसार तथा सामाजिक और राजनीतिक रूप से जागरूक दिखे।’ काश, ऐसे टिप्स बात-चीत के नोट्स के बजाय गंभीरता से लिखे गये हो। फस्तक में लगभग हजार शब्दों का ओमफरी का भी एक लेख संकलित है, ‘भारतीय सिनेमा का अवलोकन’, लेकिन इस अवलोकन में पाठकों को ऐसा कुछ नहीं मिल पाता जो उन्होंने स्वयं अवलोकन न किया हो। स्पॉट ब्वाय की पीढ़ा से लेकर धार्मिक सदभाव तक। लगभग 35 वर्ष फिल्म इण्डस्ट्री में बीता चुका कलाकार भी यदि यही रेखांकित कर रहा हो तो वाकइ संदेह होता है उनकी अवलोकन क्षमता पर।

लेकिन उस व्यक्ति की अवलोकन क्षमता पर कैसे संदेह किया जा सकता है जिसकी भारतीय ही नहीं ब्रिटिश निर्देशक भी अद्वितीय प्रतिभा, व्यवसायिकता और किसी भी किरदार के लिए मेहनत करने के लिए उनके जज्बे की प्रसंशा करते रहे हो। ओमफरी की जीवनी विश्व के किसी भी अभिनेता के लिए प्रेरक हो सकती थी, बशर्ते उसे सिर्फ बिकने के नजरीये से नहीं लिखा जाता। लेकिन विडम्बना है कि लिखे जाने से पूर्व ही यह तय कर लिया जाता है ‘निश्चित रूप से यह किताब खूब बिकेगी।’ आश्चर्य नहीं कि नंदिता सी. पुरी को सफाइ देनी पड़ती है ‘यह एक जीवनी से भी ज्यादा है।’ निश्चय ही जीवनी से भी ज्यादा इसे एक पत्नी के अंतरंग संस्मरण के रूप में पढ़ा जाना चाहिए।

शबाना आजमी कहती हैं कि ओम एक वृक्ष की भांति है जिसकी जड़े पंजाब में हैं और शाखाएं इतनी तेजी से फैलती जा रही हैं कि पश्चिम भी शर्मा जाय। ओम ने अपनी सफलताओं को लेकर कभी खेलने की कोशिश नहीं की। काश! उनकी जीवनी पढ़ते हुए भी हम ऐसा कह पाते।

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